समुद्रविज्ञान - अर्थ, प्रकृति एवं विषयक्षेत्र

 समुद्रविज्ञान - अर्थ, प्रकृति एवं विषयक्षेत्र

Topics -

  • समुद्र विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा
  • विषय क्षेत्र  
  • महासागरों एवं सागरो की क्षेत्रफल स्थिति
  • प्रकृति
  • अध्ययन का महत्व

परिभाषाएँ

फ्रीमैन (O. W. Freeman) समुद्र विज्ञान का सम्बन्ध मौसम विज्ञान के ही समान भौगोलिक पृष्ठभूमि से है। इसका सम्बन्ध पृथ्वी के सर्वाधिक गतिशील भाग जलमण्डल से है। इसके अन्तर्गत ज्वार-भाटा धाराओं, महासागरीय जल के भौतिक गुण-धर्मो, समुद्र के तटों तथा महासागरों के नितल के उच्चावच, समुद्रों के जल में पाये जाने वाले जीवों तथा उनके प्रादेशिक वितरण आदि का अध्ययन किया जाता है ।

जॉन्सन तथा फ्लेमिंग (M. W. Johnson and R. H. Fleming) इनके अनुसार समुद्र विज्ञान समुद्र से सम्बन्धित सभी पक्षों का अध्ययन करता है। इसके साथ ही यह सागरीय विज्ञानों, जो महासागरीय सीमाओं तथा उनके नितल के उच्चावच, सागरीय जल की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं, धाराओं के प्रकार तथा सागरीय जीव-विज्ञान के विविध पक्षों का अध्ययन करते हैं, के अर्जित ज्ञान को समाकलित करना है ।

प्राउडमैन (J. Proudman) समुद्र विज्ञान महासागरीय जल के भौतिक एवं जैविक गुण-धर्मों के सन्दर्भ में गति विज्ञान तथा ऊष्मा गतिकी के आधारभूत सिद्धान्तों का अध्ययन है ।

मारमर (H. A. marmer)
समुद्र विज्ञान मुख्य रूप से महासागरीय बेसिनों के स्वरूप एवं उनकी प्रकृति, इनके जल की विशेषताओं एवं उनकी गतियों का अध्ययन करता है ।

प्रकृति (Nature)

  महासागर हमारे भौतिक पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण अंग है । पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीव-जगत् का अस्तित्व महासाग के कारण है। विश्व के सभी महासागरों का कुल आयतन 1.4 बिलियन घन किलोमीटर है।

महासागरों की प्रकृति अनोखी है । जल की इस विशाल राशि में सौर ऊर्जा के भण्डारण की अत्यधिक क्षमता है । स्थल की अपेक्षा जल की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होने के कारण स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म और शीतल होता है । इसका बहुत प्रभाव जलवायु पर पड़ता है। समुद्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों की जलवायु, जल की इसी विशेषता के कारण सम बनी रहती है । स्थल एवं जल के विभिन्न गुणों के कारण ही स्थल समीर एवं समुद्र समीर चलते हैं।

समुद्रों का जल गतिशील होता है । महासागरीय धाराएँ, लहरें, ज्वार-भाटा आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। जल की इन विभिन्न गतियों के कारण समुद्रों की सतह के तापमान के ऊष्मन एवं शीतलन में स्थल की तुलना में अधिक समय लगता है । महासागरों की इस विशेषता का वायुमण्डलीय तापमान पर विशेष प्रभाव पड़ता है । समुद्र तल में होनेवाले परिवर्तनों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध हिमनदों से होता है । जलवायु परिवर्तन तथा समुद्रतल के परिवर्तन में भी घनिष्ठ सम्बन्ध है ।

महासागरों तथा समुद्रों में हजारों प्रकार के जीव तथा वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। इनमें कुछ अत्यन्त सूक्ष्म आकार की होती है। इन्हीं समुद्री जीवों के मृतक शरीर के खोल नितल पर निक्षेप के रूप में एकत्रित होते रहते हैं । इन निक्षेपों से उन दशाओं का बोध होता है जिनमें तत्कालीन जीवों का विकास हुआ था । समुद्र विज्ञान की इसी प्रकृति के आधार पर विगत भूवैज्ञानिककल्पों की जलवायु में हुए परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है ।

आर्थिक दृष्टि से भी महासागर बहुत ही धनी एवं महत्त्वपूर्ण है । महासागरों एवं सागरों अथवा खाड़ियों के निकटवर्ती क्षेत्रों में खनिज तेल, प्राकृतिक गैस तथा कोयले के विशाल भण्डार दबे पड़े हैं। महासागरों में खनिज सम्पदा के विशाल भण्डार विद्यमान हैं ।

विश्व की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के भोजन की समस्या का समाधान भी समुद्र विज्ञान से संभव है। I भोजन का पोषक तत्त्व प्रोटीनयुक्त मछली यहीं से प्राप्त की जाती है। अन्य समुद्री जीवों तथा वनस्पतियों से भी प्रोटीन की बड़ी मात्रा प्राप्त की जा सकती है । महासागर यातायात का भी एक प्रमुख साधन माना जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सामरिक दृष्टि से भी महासागरों का विशेष महत्त्व है ।

महासागरों की एक अनोखी प्रकृति है- भूकम्प जनित सुनामी लहरें, ये लहरें महाविनाशकारी होती है । अतः उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि महासागरों की प्रकृति बहुत ही दिलचस्प है। यह हमारे वायुमंडल को ही नहीं वरन् सम्पूर्ण जैवमण्डल को प्रभावित करते हैं ।

विषय क्षेत्र (Scope)


समुद्र विज्ञान का विषय क्षेत्र बहुत ही व्यापक है । आधुनिक खोजों एवं अनुसंधान फलस्वरूप प्रतिदिन ही इसके विषय क्षेत्र में विस्तार होते जा रहा है। समुद्र विज्ञान को मुख्यतः दो शाखाओं में विभाजित किया जाता है-

  1. भौतिक समुद्र-विज्ञान (Physical Oceanography)
  2. सागरीय जीव-विज्ञान (Marine Biology)


परन्तु विशेषीकरण के वर्त्तमान युग में समुद्र-विज्ञान जैसे व्यापक विषय का अध्ययन समुद्रों की अन्यान्य विशेषताओं तथा उसको प्रभावित करनेवाले अन्य तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ प्रमुख उपशाखाओं के अन्तर्गत किया जाता है । इन उपशाखाओं का विकास स्वतंत्र विषयों के रूप में हुआ है और ये सभी समुद्रों का अध्ययन भिन्न भिन्न उद्देश्यों से करते है।




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